Wednesday, February 8, 2017

इस चादर कि छोऱ पे,
कोई दाग छोड जा रहे हैं,
रोज मजा कि जिंदगी छोड के,
एक नयी चादर ओढ जा रहे हैं...

इस थंड से दूर हि सही,
पर अब चादर कि गर्मी साथ ले चले है..
अपनोसे दूर हि सही,
पर बहोत से लोगोंको अपना बना चले है..

इन वदियों कि अदा आँखो में भर के,
झंस्कार कि मिठास होठो में भर के,
नारेक कि प्यारी सी यादे संभालके...

लो हम बढ़ चले है,
जिंदगी का ट्रेक करने,
अब क्या हमें काठनायिया रोकेगी,
चादर से ताराशे हुए हम चले है उनसे दो हाथ करने...