रेत को किनारे बिछाये हुए,
अंदर हिरे, मोतीयों कि शोहरत समेटा हुआ,
इसि रेत पे मेरी दौलत देख के,
आज ये भी तंग हुआ ।
सुरज भी हमारी खुशी से,
कुछ जल सा रहा,
समंदर कि लहरों में भीगे हुए हम,
और वो तकलीफ़ में आ रहा ।
डर है ये सिमटी दौलत,
कही बिखर ना जाये,
हर कोई अपनी नैया पकड के,
कही दुर चला न जाये।खैर अपनी-अपनी नैया तो हर इक को पकडनी है…
बाद में…
हम साथ चले या ना चल पाए…
शायद समंदर फ़िर से सबसे अमीर बन जाए…
और सुरज को भी थोडा सुकुन मिल जाए…
आगे चाहे कुछ भी हो जाए…
इन तस्वीरों मे कैद वो सारे लम्हे रहेंगे…
और यादों की सल्तनत मे हम सदा राज करेंगे।
1 comment:
nice one...:)
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