गर्मी से झिंजोडके यादों के पेड से आया था बीज,
कुछ नया करने कि ठानी थी,
एक दुनियाँ छोडने का गम लेके,
किसी अंजान जगह एक नयी दुनियाँ बसानी थी।
उपर वाले को भी रहम आयी,
उसने भी खुब बारिश बरसाई,
बीतें जख्म भर गए,
बिरहा कि व्यथा घुल गयी।
बीज ने अपने कुछ अन्य बीज दोस्तों के साथ
चोटि पर एक नई बस्ती बनाई,
समय बितता गया यादों कि दुनियाँ बनती गई
यादों से इन पौधों कि सही सिंचाई हुई।
वृष्टी, तुफ़ान तो आते रहे,
पर यादों कि दुनियाँ मजबुत थी,
ये बीज अब केवल दोस्त नहि थे,
अब यहि इनकि Family थी।
देखते देखते इन बीजों ने
यादों कि एक नई दुनियाँ बनाई,
वक्त का पता न चला,
और इन्होने भी अपनी बीज बनादि।
अब बीजों को तो छोड जाना है,
अपनी दुनियाँ बसाने,
ये देखो बीज जा रहे, यादों के पेड से, गर्मी से झिंजोडने,कुछ नया करने कि ठाने,
एक दुनियाँ छोडने क गम लेके, और कई नयी दुनियाँ बनाने।
Thursday, March 22, 2012
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